भारत का आर्थिक विकास एंव जनंाकिकी घटकों का विश्लेषणात्मक अघ्ययन

 

प्रीता लाल]  विनोद जोशी

अर्थशास्त्र विभाग, डाॅ. राधाबाई शासकीय नवीन कन्या महाविद्यालय, रायपुर

 

 

संक्षेपिका-

जनांकिकी संक्रमण के द्वितीय चरण की स्थिति जनांकिकी लाभांश की श्रेणी में आती है तथा पहले चरण की अवस्था जिसमें जन्म दर एवं मृत्यृ दर अधिक होती है, इसके कारण दूसरे चरण में कार्य करने वाली आयु समूह की जनसंख्या अधिक रहती है।उक्त स्थितियों के रहते हुए गुणवत्ता युक्त 15-64 आयु वर्ग की जनसंख्या के स्वास्थ्य के स्थितियों के भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता है।

 

प्रमुख शब्द- बौद्धिक पूंजी, जनंाकिकी लाभांश, श्रमशक्ति नियोजन

 

 

 

 

आयु संक्रमण लाभाश ,‘जनंाकिकी बोनस’, अवसर के पल’, युवाओं का ठहराव एंव पराश्रित अनुपात जैसे पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग जनंाकिकी लाभांश के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों, अकादमिक एवं पत्रकारों द्वारा किया जाता है।कालान्तर में जनसंख्या वृद्धि एवं आर्थिक विकास में सम्बधों पर कई मत सामने आये। जहाॅं निराशावादियों ने कहा कि जनसंख्या के बढ़ने से विकास प्रभावित होता है, जिससे प्रतिश्रमिक पूॅंजी में कमी एंव उनकी उत्पादकता घटती है।

 

 

वहीं आशावादियों ने इस बात पर बल दिया कि जनसंख्या वृद्धि से मानवीय एवं बौद्धिक पूॅंजी में वृद्धि होती है, जिससे बाजार विस्तारित होता है, परिणामस्वरुप आर्थिक विकास होता है। एडम स्मिथ ने कहा कि आर्थिक सपन्नता हेतु श्रम विभाजन द्वारा श्रमिक विशेष लक्ष्यों को अपनी कुशलता से प्राप्त करता है, जिससे उनकी ( श्रमिक ) उत्पादकता बढ़ती है। जनांकिकीविदों द्वारा हमेशा से जनसंख्या की अधिकता एंव कमी विषय पर विभिन्न तरह के विचार सामने आते रहे।

 

पूर्वी एशिया के अर्थशात्रियों के अनुभव एवं शोध यह स्पष्ट करते हैं कि प्रजननता दर में कमी आने के कारण बच्चों की संख्या में कमी आयी है और अश्रमिकों (नाॅन वर्कर्स) से अधिक श्रमिकों की संख्या बढ़ी है। इसके कारण अश्रमिकों हेतु शिक्षा एंव अन्य सेवाओं पर खर्च कम हुए हैं। इससे श्रमिकों की द्वारा किये गये उत्पादन एंव बचत का लाभ सम्बंधित देशों को मिल रहा है। यही उत्पादन एंव बचत जनांकिकी लाभांश कहलाता है (ब्लूम एवं अन्य 2003, सोनल डे देसाई 2010)

 

कुल जनसंख्या का कार्य करने वाली जनसंख्या का अंश जनंाकिकी लाभांश कहलाता है। यह मौका किसी भी राष्ट्र के जीवन में एक बार आता है। सामान्यतः एक निश्चित आयु वर्ग (15-59) की जनसंख्या इसके अन्तर्गत आती है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार जिस राष्ट्र की कुल जनसंख्या का 10 प्रतिशत अंश वृद्ध (60 वर्ष या अधिक) हो जाता है वह समाज वृद्ध कहलाता है। चीन का जनांकिकी लाभांश सन् 2015 तक खत्म हो जायेगा, भारत की स्थिति सन् 2040 तक निरंतर बने रहने की संभावना है (संतोष मेहरोत्रा एवं अन्य 2013)। जनांकिकी संक्रमण के द्वितीय चरण की स्थिति जनांकिकी लाभांश की श्रेणी में आती है तथा पहले चरण की अवस्था जिसमें जन्म दर एवं मृत्यृ दर अधिक होती है, इसके कारण दूसरे चरण में कार्य करने वाली आयु समूह की जनसंख्या अधिक रहती है।

 

भारत में सन् 2040 तक जनांकिकी लाभांश की निरन्तरता बनी रहेगी। सारिणी-1 से स्पष्ट है कि भारत जनांकिकी संक्रमण के द्वितीय चरण में है। 1961 के समय भारत की कुल प्रजनन दर 4.50 से 5.50 के बीच रही, जबकि, 2011-15 के बीच यह 2.3 आंकी गई है। इससे स्पष्ट है कि बच्चे कम पैदा हो रहे हैं। 1961 में कुल जनसंख्या का 0-14 आयु वर्ग के 41.0 प्रतिशत व्यक्ति थे, जबकि 2011 में यह घटकर 30.76 प्रतिशत हुई है। वहीं, 15-64 वर्ष की आत्म निर्भर जनसंख्या 1961 से 2011 के बीच लगभग 9 प्रतिशत से बढ़कर 55.9 से 63.4 क्रमशः हो गयी है। पी.एफ.आई. एवं पी.आर.बी. प्रक्षेपण सीधा इंगित करता है कि भारत सन् 2041 तक वृद्ध राष्ट्र की श्रेणी में आ जायेगा। क्योंकि 2041 तक भारत की कुल जनसंख्या का 10.1 प्रतिशत 65$ की हो जायेगी। परंतु फिर भी 2061 तक 15-64 आयु वर्ग की 64.1 प्रतिशत जनसंख्या के अनुमान मात्र से आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर जनसंख्या की एक लम्बी अवधि तक भारत की जनसंख्या में होने के सकारात्मक संकेत को परिलक्षित करता है। यू.एन. जनसंख्या प्रक्षेपण द्वारा भी प्रक्षेपित आॅंकड़े 2050 तक 0-14 आयु वर्ग की जनसंख्या में अत्यधिक कमी का संकेत देते हुए इसे कुल जनसंख्या का मात्र 18.2 प्रतिशत बताया।

 

जनंाकिकी लाभांश में  लाभांश का शुद्ध अर्थ युवाओं की अधिकता, जो कि आर्थिक रुप से आत्म निर्भर होते हैं, जबकि 0-14 आयु वर्ग एवं 65 वर्ष की आयु के ऊपर की जनसंख्या आश्रित जनसंख्या होती है। सारणी-2 दर्शाती है कि 1961 में 0-14 आयु वर्ग की युवा आश्रितता प्रति 1000 व्यक्तियों 770 थी, जबकि वृद्ध महिला 106 थी। वर्तमान समय में 2011 तक यह क्रमशः 484 एंव 78 है। प्रक्षेपित रुझान यह दर्शाते हैं कि धीरे-धीरे युवा आश्रितता एंव वृद्ध आश्रितता बढ़ती जा रही है, परंतु 0-14 वर्ष की आश्रितता की कुल संख्या में कमी एवं वृद्ध आश्रितता की संख्या में बढ़ोतरी का रुझान दिखाई दे रहा है, इससे भी स्पष्ट है कि आने वाले दशकों में वृद्धों की संख्या बढ़ेगी।

 

जनसंख्या एवं सामाजिक विकास का अन्यान्योश्रित सम्बंध होता है। मजबूत सामाजिक विकास के संकेतक जनंाकिकी लाभांश को गुणवत्तापूर्ण बनाने में कारगर होते हैं। सामाजिक विकास की अवधारणा में आर्थिक विकास सम्मिलित है, लेकिन इससे अलग अर्थों में विकास सम्पूर्ण रुप से आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पक्षों पर बल देता है। सामाजिक विकास के अन्तर्गत सामाजिक परिप्रेक्ष्य प्रासंगिक विषयवस्तु है।

 

20वीं शती में सामान्य रुप से तेजी से प्रजनन दर कम होने के कारकों में स्वास्थ्य सुविधा का उन्नयन, परिवार नियोजन की पहुच, आर्थिक विकास एंव नगरीकरण है। अन्य कारकों में- नौकरी के लिए प्रतियोगिता, घर में जगह की कमी, निम्न जन्म दर के लिए सरकारी प्रयास जिम्मेदार हैं। समाजशास्त्रियों द्वारा कहा गया कि जब आय एवं जीवन स्तर में बढ़ोŸारी होती है तो माता-पिता अपने बच्चों से अपेक्षा करते हैं कि यह भी आगे बढ़े। इसके लिए वह कम बच्चे पैदा करते हैं और सारी पूजी उसके अच्छे भविष्य एवं सुखमय जीवन के लिए लगा देते हैं। ऐसे समाजों में शहरी गरीबी, अधिक ग्रामीण जनसंख्या, अत्यधिक अशिक्षा, परिवार नियोजन के साधनों का कम प्रयोग तथा दरिद्रता को दूर करने का कोई सुरक्षा जाल न होना जैसी विशेषताए पायी जाती हैं।

 

 

 

जनसंख्या वृद्धि का सामाजिक विकास के आयामों को प्रभावित करने तथा उससे प्रभावित होने की प्रक्रिया चलती रहती है। सामान्य रुप से परिवार की संरचना, उत्पादकता, कार्य केे अवसर, बाल श्रम, लिंगीय भेद, शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर जनसंख्या वृद्धि पर प्रभाव पड़ा है, वहीं सामाजिक विकास का जनसंख्या वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है यथा-जनांकिकी संक्रमण, नयी सामाजिक विशेषताओं का प्रादुर्भाव, नई सामाजिक प्राथमिकताएॅं, आधुनिकता के कारक, सामाजिक पुनर्सगठन, परंपरागत सोच इत्यादि (एहसानुक हक, 2007 )। भारत के परिप्रेक्षय में जनंाकिकी लाभांश का फायदा तभी मिल सकता है जब सामाजिक विकास के संकेतकों का स्झान मजबूती प्रदर्शित करे। सामाजिक विकास एवं जनसंख्या की तुलना के विश्लेषण से सन् 2040 तक भारत के 15-64 आयु वर्ग के लोगों की गुणवत्ता का आंकलन करने में सहायता मिलेगी।

 

राष्ट्रीय प्रतिदर्श सवेक्षण कार्यालय के विभिन्न चक्रों का रोजगार एवं बेरोजगार सर्वेक्षण बताता है कि भारत में रोजगार की दर 1999-2000 में 30.9 प्रतिशत थी, 2004-05 में यह 35.8 प्रतिशत , 2009-10 में 28.6 प्रतिशत तथा 2011-12 में 24.6 प्रतिशत थी। इससे स्पष्ट है कि भारत में श्रम शक्ति तो है, परन्तु रोजगार के अवसरों की संख्या कम होती जा रही है।

 

आर्थिक सर्वेक्षण 2011-12 द्वारा गरीब बच्चों के विकास का संकेतक प्रतिवेदन’, जो कि हंगामा (भ्ंदहंउं) के माध्यम से कराया गया था। इससे स्पष्ट होता है कि भारत में 42 प्रतिशत बच्चे सामान्य वनज से कम के हैं, वहीं 59 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं तथा 50 प्रतिशत बच्चे 25 किलोग्राम से कम पैदा होते हैं। जबकि 51 प्रतिशत बच्चे कोलस्ट्रम युक्त दूध नहीं पी पाते हैं तथा 6माह तक 58 प्रतिशत बच्चों को माॅं के दूध के स्थान पर पानी पिलाया जाता है। अभी भी प्रति 1,00,000 गर्भवती माताएॅं प्रसव के उपरान्त 212 की संख्या में मर जाती हैं। 0-4 आयु वर्ग के बच्चों (शिशु मृत्यु दर-47) के मरने की दर प्रति 1000 पर 14.1 है।

 

उक्त स्थितियों के रहते हुए गुणवत्ता युक्त 15-64आयु वर्ग की जनसंख्या के स्वास्थ्य के स्थितियों के भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसी क्रम में यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज कार्यक्रम को आगे बढ़ाने हेतु उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समूह (एच.एल..जी.) ने कुछ सुझाव दिए हैं, जिन्हें लागू करने से स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार आ सकता है, यथा- गाॅंवो में प्रति 500 व्यक्तियों पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकत्री एवं शहरों में यह 1000 व्यक्तियों पर उपलब्ध हों, उप स्वास्थ्य केन्द्रों पर 3000-5000 जनसंख्या आच्छादित हो, प्रत्येक 10,000 व्यक्तियों पर 23 स्वास्थ्य कर्मी हों जिसमें 1000 व्यक्तियों पर एक डाक्टर भी रखने की योजना है। 95 प्रतिशत स्वास्थ्यकर्मी केवल नगरों में हैं इसलिए गुणवत्ता युक्त स्वास्थ्य सेवाएॅं गाॅंवो में नहीं मिल पाती है, इसलिए इसमें कमी लायी जाये ;।लनेीद्ध सम्बंधी चिकित्सकों को 3 से 6 माह का प्रशिक्षण देकर उप सामुदायिक एवं जिला चिकित्सालयों पर तैनाती की जायैं

 

वर्तमान समय में जहाॅं युवा अभी आत्म निर्भर होने की प्रक्रिया में है, वहीं आने वाले समय में वृद्धों की निर्भरता उस पर बढ़ेगी, जिससे परिवार का स्वरुप बदलेगा, तनाव में वृद्धि होगी। लोगों की गत्यात्मकता में वृद्धि  के परिणाम स्वरुप नये प्रकार की सामाजिक समस्यायें- युवा अशांति, जेंडर, शोषण तथा महिला हिंसा, असंगठित क्षेत्र एवं मलिन बस्ती इत्यादि समाज कार्य के नये क्षेत्र होंगे।

 

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Received on 08.12.2015       Modified on 20.12.2015

Accepted on 29.12.2015      © A&V Publication all right reserved

Int. J. Ad. Social Sciences 3(4): Oct. - Dec., 2015; Page 148-151